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शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010












जब से जतलाया है तुमने कि
नहीं समझती तुम्हे
मेरी लिखी
एक भी कविता
सच मानो!!!
तुम मुझे
पहले से ज्यादा
अच्छे लगने लगे हो

5 टिप्‍पणियां:

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

!!!!!!
Ashish

बेनामी ने कहा…

जब से जतलाया है तुमने कि
नहीं समझती तुम्हे
मेरी लिखी
एक भी कविता'
जब से जतलाया है तुमने कि
नही समझ आती तुम्हे
मेरी लिखी
एक भी कविता'
इस तरह लिखो तो शायद ज्यादा बेहतर नही लगेगी? जैसे सीधे सरल भाव है वैसी ही उन्हें रहने दो.इसकी ख़ूबसूरती इसकी सादगी है.
एनी लोगों की तरह इन्हें शब्द जाल में मत डालो.ये मर जायेंगी धीरे धीरे.प्यार.

Urmi ने कहा…

आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

उम्मतें ने कहा…

कविता नहीं समझनें वाले पर ज्यादा प्यार बेवज़ह तो आया नहीं होगा :)
उम्मीद है उन्हें ये कविता समझ भी आई होगी और पसंद भी :)


[ मुझे कविता अच्छी लगी यकीन जानिये ]

'साहिल' ने कहा…

खूबसूरत भाव !