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रविवार, 14 नवंबर 2010

काश! वह् रोज़े-हशर भी आए!


तू!
मेरे हमराह खडा हो
सारी दुनिया पत्थर लेकर
जब् मुझको संगसार करे
तू अपनी बाहो मे छूपा कर
तब् भी मुझ् से प्यार करे

4 टिप्‍पणियां:

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

लिल्लाह!
आशीष
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पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!

उम्मतें ने कहा…

एक उम्मीद ही तसल्ली बख्शती है ! वो ही जोड़े रखती है रिश्ते !

बेनामी ने कहा…

बाप रे! यानी पत्थर भी लगे तो 'उसको'
हा हा हा
किन्तु...ये प्यार की परिकाष्ठा होती है जब दुनिया जख्म दे तब भी जख्म जख्म नही लगते जो हमारा महबूब साथ हो.उसकी बाँहों में मौत भी हसीं है संगसार होना तो बहुत मामूली बात होगी.जियो.
'तेरे इश्क की उम्र दराज़ हो'.
आमीन

lori ने कहा…

आशीष जी, इन्दू आंटी और अली जी !!!!!
हौसला-अफजाई का बहुत शुक्रिया.