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बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

भेजो ना




धूप बहुत है, मौसम जल-थल भेजो ना
बाबा मेरे नाम का बादल भेजो ना !

मोल्सरी की शाखों पर भी दिए जले
शाखों का केसरिया आँचल भेजो ना!

नन्ही-मुन्नी सब चेह्कारें कहाँ गयी
मोरों के पैरों की पायल भेजो ना !

बस्ती बस्ती दहशत किसने बो दी है
गलियों बाज़ारों की हलचल भेजो ना !

सारे मौसम एक उमस के आदी हैं
छावं की खुशबू, धूप का संदल भेजो ना!

मै तन्हाँ हूँ आखिर किससे बात करूँ
मेरे जैसा कोईं पागल भेजो ना !

- राहत इन्दौरी

7 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

आभार इसे पढ़वाने का.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

राहत इन्दौरी साहब की सुन्दर ग़ज़ल पढवाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !

उम्मतें ने कहा…

बहुत खूब ! राहत साहब आपके पसंदीदा शायर लगते हैं :)

केवल राम ने कहा…

बस्ती बस्ती दहशत किसने बो दी है
गलियों बाज़ारों की हलचल भेजो ना !

एक एक शेर अर्थपूर्ण ...आपका अंदाज पसंद है ..

केवल राम ने कहा…

कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

rahat indori jee ke khubsurat gajal ko share karne ke liye dhanyawad...ummit karta hoon.aur bhi bahut khuchh dikhega...isliye follow kar raha hoon:)

lori ने कहा…

शुक्रिया जी!
उड़न तश्तरी जी, सुरेन जी, अली जी, केवल जी , मुकेश जी,
हौंसला अफजाई का बहुत शुक्रिया!!!!