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गुरुवार, 20 सितंबर 2012

असद उल्लाह खाँ ग़ालिब

 


कब से हूँ क्या बताऊँ, जहान-ए -ख़राब में
शब्ब्ये  हिज्र को भी रखूँ गर हिसाब में

ता'  फिर ना इंतज़ार में नींद आये उम्र भर
आने का अहद कर गए, आये जो ख्वाब में

क़ासिद के आते आते ख़त एक और लिख रखूँ
मै जानता हूँ जो वो लिक्खेंगे जवाब में

मुझ तक कब उनकी बज़्म में आता था, दौर ए जाम
साकी ने कुछ मिला ना दिया हो शराब में....
                                                       - ग़ालिब