कितना सहल जाना था
खुशबुओं को छू लेना
कितना सहल जाना था
बारिशों के मौसम में शाम का हर एक मंज़र
घर में क़ैद कर लेना
कितना सहल जाना था
जुगनुओं की बातों से फूल जैसे आँगन में
रोशनी सी कर लेना
कितना सहल जाना था
उसकी याद का चेहरा
ख्वाब्नाक आँखों की
झील के जज़ीरों पर देर तक सजा लेना
कितना सहल जाना था
ऐ नज़र की खुशफहमी!
इस तरह नहीं होता
तितलियाँ पकड़ने को दूर जाना पड़ता है .
- हुमा शफीक हैदर