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शनिवार, 24 मई 2014

एक प्याली चाय




 



एक कसक 
एक खलिश 
कुछ मिला अनमिला 
कुछ गुमा अध गुमा 
कुछ अधूरे ख़्वाब 
कुछ नामुकम्मल ख्वाहिशें 
 सबकी टूटन 
और नए रास्तों पर चलने की हिम्मत 
कितना कुछ बाँट बूंट कर 
हल्का कर देती है
एक प्याली चाय 
अम्मा पास न हो तो 
दुलार भी देती है 
जीने का हौंसला भी दे जाती है 
और दे जाती है 
गर्म भाँप  में धुँआते से दिल को 
इतवार की  सुबह 
देर तक सोने के
 रंगीन सपने   
लोरी