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गुरुवार, 24 मार्च 2016

फाग गीत




मेरे फाग भरे गीतों को, अपने राग भरे स्वर देना
मीत! मेरे मीठे सपनों को अपनी प्रीत का घर देना

बासंती मौसम में बहकी मधुमासी सी हलचल में
मेरी सांसों के उपवन को प्रीत पवन से भर देना 

हर धडकन में बिछे पलाश के स्वागत आतुर आलिंगन को
अपने हाथों मंथन कर के प्रेम पलाश सा कर देना

प्रियतम मेरे हाथों में जो निज सपनों की माला है
इसे समर्पण सेतु की पहली गांठ का वर देना

परिचय की इन गांठो को, परिणय के बंधन देकर

मेरे जीवन की संगत पर, अपनी सरगम के स्वर देना

                                                             लोरी   

12 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (25-03-2016) को "हुई होलिका ख़ाक" (चर्चा अंक - 2292) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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रंगों के महापर्व होली की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

उम्मतें ने कहा…

परिचय को गांठ और परिणय को बंधन ?

lori ने कहा…

क्या कहूं कितना प्यारा कमेंट है .....आपने सुना है वह गीत “रजनीगंधा फूल तुम्हारे......”
“ कितना सुख है बंधन में .......”

lori ने कहा…

शुक्रिया गुरुदेव !
आपको होली की रंग भरी शुभकामनायें ...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बासंती मौसम में बहकी मधुमासी सी हलचल में
मेरी सांसों के उपवन को प्रीत पवन से भर देना

क्या बात .... शुभकामनाएं

Vaanbhatt ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति...

डॉ. सापेक्ष गौतम ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत गीत...बधाइयाँ

डॉ. सापेक्ष गौतम ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जमशेद आज़मी ने कहा…

बहुत ही सुंदर रचना। अच्छा लिखा है आपने।

lori ने कहा…

shukriya ji...

lori ने कहा…

shukriya

तरूण कुमार ने कहा…

सुन्दर शब्द रचना